Sunday, January 9, 2011

दो कंधो पर हमारा देश

आज बादले हूए इस युग में, हमारे देश में, हमरी टेक्नोलोजी में, हमारी अर्थव्यवस्था  में, और तो और हमारे समाज में भी बादलाव आ रहा है। और जैसे-जैसे समाज मे बदलाव अएगा वेसे-वेसे युवाओ में बदलाव अयेगा,      
अगर युवा का समाज सभ्य और नई सोच व एक द्र्श्टीकोण का होगा। तभी हमरा देश उनत्ती के शीखर तक पहुच सकता है। एक बात ये भी है कि नेता और अफसर ही हमे व हमारे देश को भ्रष्ट करते हैं। और इस भ्रष्टाचार से ये ही हमें बचा सकते हैं। ये ही हमरे देश के दो कंधे हैं।..........

                                               
   "उगता सूरज हमारे देश का
      कही सपना ना रहजाये
        जब तक एक न होगा युवा
          तब तक भ्रष्टाचार से ना छुटेगा
            पीछा हमारा"।         

          

Friday, December 31, 2010

"मै कवि हूँ मुझे नहीं पता"

मै अंजान काव्य से
लिखने बैठा कविता
सोच रहा हूँ क्या है कविता
क्या जो मै लिख रहा हूँ वो है कविता |

शायद कविता मीठी वाणी की तरहां होती
शायद व् बच्चे की किलकारी की तरहां होती
शायद वो बच्चे के प्रति माँ के प्रेम  की तरहां होती
शायद ये गुड़ की मीठी मिठास की तरहां  होती |

मै क्या कवी हूँ
पर मै लिख रहा हूँ कविता
शायद ये ही है कविता
मै कवि हूँ मुझे नहीं पता |

Friday, August 6, 2010

"शायद में पंछी होता"

मै पंछी होता तो
जो मन करता वो मै करता
इधर भी जाता उधर भी जाता
उडता फिरता नील गगन में |

शाम होती तो आ सोजाता
सुबह होती तो फिर उड़ जाता
जा बैठता मीठे बागानों में
जी.. भर खाता फिर मै जाता नीर किनारे |

 ले साथियों को उड़ जाता मै नील गगन में
उड़ जाता मै मिलो... मिल चला जाता मै उस दुनिया में
जहाँ न कोई टोक ता किसी को
जो मन करता वो मै करता
 शायद मै पंछी होता |

Thursday, August 5, 2010

"शायद में पंछी होता"

मै पंछी होता तो
जो मन करता वो मै करता
इधर भी जाता उधर भी जाता
उडता फिरता नील गगन में |

शाम होती तो आ सोजाता
सुबह होती तो फिर उड़ जाता
जा बैठता मीठे बागानों में
जी.. भर खाता फिर मै जाता नीर किनारे |

 ले साथियों को उड़ जाता मै नील गगन में
उड़ जाता मै मिलो... मिल चला जाता मै उस दुनिया में
जहाँ न कोई टोक ता किसी को
जो मन करता वो मै करता
 शायद मै पंछी होता |